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सर बिरोली – गढ़वाली Poem

रावत की कलम से
रावत की कलम से
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सर बिरोली जब भी आंद,
अन्याड़ सदानी कैरी जांद।।

द्वार ढ़ोंग्यां रैंदा पट्ट,
पर खोली देंदी स्या चट्ट।
दूध की भांडी पेयी जांद।
सर बिरोली जब भी आंद,
अन्याड़ सदानी कैरी जांद।।

सुबेर कल्या रोटी पकायी,
तिबारी डिडांळी साफ़ कायी।
तब तक स्या सब खै जांद।
सर बिरोली जब भी आंद,
अन्याड़ सदानी कैरी जांद।।

कल्यो दे कैन जलोठा धरयुं,
स्यूं भी सीं बिरोली ना खयुं।
सब गायी निर्भगी का प्याट।
सर बिरोली जब भी आंद,
अन्याड़ सदानी कैरी जांद।।

छै मेरी कुछ कुखुड़ी सैंती,
वु भी छनी से भैर खैंची ।
छि भै भारी नुक्सान कै जांद।
सर बिरोली जब भी आंद,
अन्याड़ सदानी कैरी जांद।।

ढुंढणु छौं पर हथ नि आणी,
अन्याड़ कनी मूसा नि खाणी।
छडम ह्व़े त निंद उडी जांद।
सर बिरोली जब भी आंद,
अन्याड़ सदानी कैरी जांद।।

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
“गढ़वाली इंडियन” दिनांक: १७-०९-२०१२

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